ram manohar lohia biography in hindi।
राम मनोहर लोहिया बायोग्राफी
जन्म: 23 मार्च, 1910, अकबरपुर, फैजाबाद
पिता:- हिरालाल लोहिया
माता:- चंदा देवी
शिक्षा:- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय, बर्लिन विश्वविद्यालय
कार्य क्षेत्र: स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता
पार्टी:- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
निधन: 12 अक्टूबर, 1967, नई दिल्ली
राम मनोहर लोहिया एक राजनेता, समाज वादी और स्वतंत्रता सेनानी थे। राम मनोहर लोहिया ने हमेशा सत्य का अनुसरण किया, और गरीबों और निम्न वर्ग की आवाज उठाई। स्वतंत्रता की लड़ाई में इन्होने बहुत योगदान दिया। वह ऐसे राजनेता थे जो राजनीती का रुख बदलने का माद्दा रखते थे। राम मनोहर लोहिया अपनी देशभक्ति और तेजस्वी समाजवादी विचारों के लिए जाने जाते थे। इन्ही कारणों से उन्होंने देश के महान राजनेताओं अपनी जगह बनाई। आज भी इनका सभी राजनेता सम्मान करते थे।
राम मनोहर लोहिया का प्रारंभिक जीवन:-
राम मनोहर लोहिया का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर मे 23 मार्च 1910 में हुआ था। उनके पिता भी स्वतंत्रता सेनानी थे और माता एक अध्यापिका थी। जब वे छोटे थे तब ही उनकी मां का देहांत हो गया था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा अकबरपुर के छोटे से स्कूल से की। वह पढ़ने मे बहुत अच्छे थे। स्कूल के बाद इंटरमीडिएट की पढ़ाई के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय गये। उसके बाद स्नातक करने के लिए वह कलकत्ता विश्वविद्यालय चले गये। और 1929 में स्नातक की डिग्री हासिल की। राम मनोहर लोहिया पढ़ने मे बहुत अच्छे थे इसलिए उनके पिता उन्हें और आगे पढ़ाने के लिए जर्मनी भेजा। जर्मनी जाकर उन्होंने बर्लिन विश्वविद्यालय मे एडमिशन लिया।उन्होंने वहां पढ़ाई मे उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जिससे उन्हें स्कॉलरशिप मिली और 1932 मे उन्होंने पीएचडी की डिग्री हासिल की। वहां रहते हुये इन्होने जर्मन और अंग्रेजी भाषा भी सिख ली थी।
राम मनोहर लोहिया जब छोटे थे तब उनके पिता उन्हें स्वतंत्रता संग्राम की रैलियों और ब्रिटिश सरकार के विरोधी सभाओं मे ले जाते थे। राम मनोहर लोहिया तभी से सत्य के साथ खड़ा होना सीखा चाहे उसके लिये कोई भी कीमत चुकानी पड़े। उनके पिता महात्मा गांधी के अनुयायी थे, वे एक बार राम मनोहर को गांधी जी से मिलवाने अपने साथ ले गये। राम मनोहर गांधी जी से बहुत प्रेरित हुए और जीवन भर गाँधी जी के आदर्शों पर चले।
1921 में वे जवाहर लाल नेहरू से मिले और कुछ वर्षों तक उनके साथ कम करते रहे। लेकिन कुछ ही दिनों में उन दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों और राजनीतिक सिद्धांतों को लेकर मनमुटाव होने लगा। 1928 मे जब जब अंग्रेजो ने साइमन कमिसन लाया तब लोहिया जी ने कई विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया। लोहिया तब मात्र 18 साल के थे, इत्ती कम उम्र होने के बाद भी उन्होंने सफलता पूर्वक विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया। गाँधी जी यह देख कर बहुत प्रसन्न हुये।
राम मनोहर लोहिया की विचारधारा:-
राम मनोहर लोहिया भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी की जगह हिंदी को प्राथमिकता देते थे। ऐसा नहीं था की उन्हें अंग्रेजी नहीं अति थी, वह अंग्रेजी मे बहुत अच्छे थे। पर उनका मानना था कि अंग्रेजी शिक्षित और अशिक्षित व्यक्ति के बीच दूरी पैदा करती है। और जो शिक्षीत भी है उन्हें भी हिंदी बोलनी चाहिए और अपना सारा काम हिंदी मे करना चाहिए। वे कहते थे कि इससे एकता की भावना और राष्ट्र के निर्माण के विचारों को बढ़ावा मिलेगा और जो पढ़े नहीं है वह भी सामने आ सकेंगे। क्योंकि उस समय भारत मे मात्र 12% ही लोग ऐसे थे जो पढ़ और लिख सकते थे। बांकी के 82 % जो बहुत बड़ा अकड़ा होता है वह अलग थलग रह जाते थे।
वह जात-पात के भी घोर विरोधी थे। क्योंकी वह समय ऐसा था की भारत मे जाट-पात को लेकर बहुत भेद भाव होता था। उन्होंने जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए सुझाव दिया कि “रोटी और बेटी” के माध्यम से जात-पात को खत्म किया जा सकता है। उनका कहना यह था कि सभी जाति के लोगों को एक साथ मिल-जुलकर भोजन करना चाहिए और इसमें किसी भी प्रकार का रोकटोक नहीं होनी चाहिए और उच्च जाती के लोगों को निम्न जाति के लोंगो के यह शादी करना चाहिए जिससे जात-पात के नाम से होने वाला भेद भाव स्वयम ही खत्म हो जायेगा।
उन्होंने सिर्फ यह दूसरों के लिए ही नहीं कहाँ था। उन्होंने अपने जीवन मे भी इसका पालन किया था। वह अपनी पार्टी यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी के उच्च पदों के लिए निम्न जाती के लोगों को चुनाव के टिकट दिया। वह ये भी चाहते थे कि भारत मे बहतर सरकारी स्कूलों की स्थापना हो, जिन स्कूलों मे सभी को शिक्षा का अधिकार और समान मिले।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में राम मनोहर लोहिया का योगदान:-
राम मनोहर लोहिया जब छोटे तब से वह अपने पिता और महात्मा गाँधी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों को देश के लिए आंदोलन करते और जेल जाते देखा था। जिससे प्रभावित होकर वह भी भारत के आजादी लिए कुछ करना चाहते थे। उनका एक ही सपना था 'भारत को आजादी दिलाना' इसलिए वह बचपन से ही आंदोलन में भाग लेने लगे थे। बड़े होने पर भी वह अपना सपना नहीं भुले। जब वह बनारस विश्वविद्यालय मे थे तब भी वह आंदोलनों मे भाग लेते थे, वह बनारस विश्वविद्यालय मे छात्र नेता थे। और जब वह पढ़ने के लिए यूरोप गये तब वह वहां भी अपने देश को नहीं भुले। उन्होंने वहां भारतीयों के लिए एक क्लब बनाया, जिसका नाम असोसिएशन ऑफ़ यूरोपियन इंडियंस रखा। जिसका उद्देश्य था की भारत के बाहर रह रहे यूरोपीय भारतीयों के अंदर भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति जागरूक बनाए रखना।
जिनेवा मे लीग ऑफ नेशन्स की सभा होरही थी। इस लीग मे भारत का प्रतिनिधित्व बीकानेर के महाराजा कर रहे थे। लेकिन राम मनोहर लोहिया भी वहां पहुंच गये, वह दर्शक गैलरी मे बैठे थे। वहां बैठकर वह ब्रिटिश सरकार के विरोध मे प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस विरोध के कारण उन्हें बाहर निकाल दिया गया लेकिन वह जिस काम के लिए गये थे वह साकार होगया। क्योंकी उनके विरोध की खबर देश विदेश के कई बड़े अखबारों मे छपी। इस पूरी घटना ने राम मनोहर लोहिया को रातों-रात भारत में एक सुपर स्टार बना दिया। फिर 1938 मे वह अपनी पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद भारत वापस आगये। वापस आने के बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। और 1934 में इन्होने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। और 1936 में इन्हे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का पहला सचिव बनाया गया।
राम मनोहर लोहिया को पहली बार 24 मई 1939 मे गिरफ्तार किया गया। उन्हें उनके द्वारा दिये गये भासणो और जनता को सरकारी संस्थाओं के बहिष्कार करने लिए कहने के कारण गिरफ्तार किया गया। लेकिन ब्रिटिश सरकार उनको ज्यादा दिन तक जेल मे नहीं रख पाई। भारत के युवा भारी विद्रोह शुरू कर दिया। जिससे अंग्रेजो ने उन्हें कुछ दिन बाद ही छोड़ दिया। हालांकि कुछ दिन बाद उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया, इस बार उन्हें एक लेख लिखने के कारण गिरफ्तार किया गया था। इस लेख का नाम “सत्याग्रह नाउ” था। इस बार उन्हें दो साल तक के लिए गिरफ्तार किया गया। और फिर 1941 मे उन्हें छोड़ा गया। कांग्रेस द्वारा 1942 मे चलाये गये भारत छोड़ो आंदोलन मे भाग लेने के कारण इन्हे और कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद भी राम मनोहर लोहिया को दो बार गिरफ्तार किया गया। एक बार उन्हें मुंबई से गिरफ्तार किया और दूसरी बार गोवा मे तत्कालीन पुर्तगाली सरकार के खिलाफ भाषण देने पर गिरफ्तार किया गया। उस समय गोवा मे पुर्तगाल का सासन था। जब भारत की आजादी समय आया तब मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक अलग देश की मांग करने लगी। तब राम मनोहर लोहिया इसका भारी विरोध किया। उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से इसका विरोध किया। उन्होंने बोला उन्हें देश का विभाजन मंजूर नहीं था। आखिर भारत के दो हिस्से कर दिये गये। जिससे नाराज होकर राम मनोहर लोहिया 15 अगस्त 1947 मे जब भारत को आजादी मिली तो वह दिल्ली नहीं गये।
भारत की आजादी के बाद की गतिविधियाँ:-
आजादी के बाद राम मनोहर लोहिया राष्ट्र के पुनर्निर्माण करने मे अपना योगदान दिया। उन्होंने आम जनता और कारोबारियों से अपील की कि वे कुओं, नहरों और सड़कों का निर्माण कर राष्ट्र के पुनर्निर्माण मे योगदान दे। उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से उनके खर्च पर सवाल उठाये। क्योंकी आजादी के वक्त भारत बहुत गरीब देश था। लेकिन जवाहरलाल नेहरू ऐसे पैसे खर्च किये जा रहे थे जिससे कतई नहीं लगता था की वे एक गरीब देश के प्रधानमंत्री है।
राम मनोहर लोहिया जब तक जीवित रहे वह उन सभी मुद्दों को उठाते रहे जो भारत की तरक्की मे बाधा बन रहे थे। चाहे अमीर-गरीब के बीच का अंतर हो, जातिगत असमानता हो, स्त्री और पुरुष के बीच मे होने वाली असमानता हो, कृसि सम्बंधित समस्याएं हो।
राम मनोहर लोहिया का निधन:-
राम मनोहर लोहिया का निधन 12 अक्टूबर 1967 को नई दिल्ली में हुआ। जब इनका निधन हुआ तब वह 57 साल के थे।