पूरा नाम :- मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या
जन्म :- 15 सितंबर 1860,
जन्म स्थान :- चिक्काबल्लापुर, कोलार, कर्नाटक
व्यवसाय :- उत्कृष्ट अभियन्ता(इंजीनियर) एवं राजनयिक
स्वर्गवास :- 14 अप्रैल 1962
भारतरत्न सर एम. विश्वेश्वरैया एक प्रख्यात अभियन्ता (इंजीनियर) और राजनेता थे। उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके द्वारा किये गये अभूतपूर्व कामों के लिए उन्हें 1955 में देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया। उनके जन्मदिन को भारत मे अभियन्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने हैदराबाद शहर के बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के का डिज़ाइन बनाया था और मुख्य इंजीनियर के तौर पर मैसुर के कृष्ण सागर बाँध के निर्माण भी में भूमिका निभाई थी।
एम. विश्वेश्वरैया का प्रारंभिक जीवन:-
ऍम.विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री था और माँ का नाम वेंकाटम्मा था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। जब विश्वेश्वरैया 12 साल के थे तब उनके पिता का देहांत होगया। ऍम.विश्वेश्वरैया की प्रारंभिक शिक्षा चिक्काबल्लापुर के प्राइमरी स्कूल से प्राप्त की। (( M Visvesvaraya biography in hindi))
स्कूल की शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्होंने बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया। वह पढ़ने मे बहुत अच्छे थे लेकिन धन के अभाव के कारण उन्हें बंगलौर जैसे बड़े शहर मे रहना मुश्किल हो रहा था, इसलिए उन्होंने यहाँ ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और इन सब के बीच उन्होंने 1881 में बीए में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
उसके बाद उनकी प्रतिभा को देखते हुए मैसूर सरकार ने उनकी पढ़ाई का खर्चा उठया और उनका दाखिला इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला कराया। और 1883 मे एलसीई व एफसीई परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके उन्होंने अपनी योग्यता को फिर साबित किया।
एम. विश्वेश्वरैया का कैरियर :-
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें मुंबई के PWD विभाग में नौकरी करने का मौका मिला। इस दौरान उन्होंने डेक्कन प्रोविंस में एक जटिल सिंचाई व्यवस्था का निर्माण किया। उस समय संसाधनों और उच्च तकनीक का आभाव होता था लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिभा से कई परियोजनाओं को सफल बनाया।
इन परियोजना मे प्रमुख थी कृष्णराजसागर बांध जो आज भी सफलता पूर्वक काम कर रहा है, भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स, मैसूर ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय और बैंक ऑफ मैसूर। ये परियोजनायें ऍम. विश्वेश्वरैया के कठिन प्रयास से ही संभव हो पाई।
उनके काम को देखते हुए पुरे भारत से बड़ी परियोजनाओं के निर्माण के लिए उनको बुलाया जाने लगा। सिंध राज्य से भी उनको बुलावा आया, वहां के लिए कार्य करते हुए उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को जल आपूर्ति की योजना उन्होंने तैयार किया वो सभी लोगों को पसंद आया।(( M Visvesvaraya biography in hindi))
अंग्रेज सरकार ने सम्पूर्ण भारत मे सिंचाई व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने के लिए एक योजना बनाई इस परियोजना में भी इन्होने मुख्य भूमिका निभाई। इस परियोजना के लिए उन्होंने पानी रोकने की नई प्रणाली का आविष्कार किया। इस प्रणाली मे उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकते है, आज भी इसी प्रणाली का प्रयोग पूरे विश्व में किया जाता है। उन्होंने मूसा व इसा नामक दो नदियों पर बांध बनाने के लिए भी योजना बनायीं थी।
इसके बाद उन्हें 1909 में मैसूर राज्य का मुख्य अभियन्ता नियुक्त किया गया। वो मैसूर राज्य की समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को लेकर बहुत चिंतित थे। इन समस्याओं को मैसूर राज्य से खत्म करने के लिए उन्होंने ‘इकॉनोमिक कॉन्फ्रेंस’ के गठन का सुझाव दिया। इकॉनोमिक कॉन्फ्रेंस के गठन के बाद उन्होंने मैसूर राज्य के लिए कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण कराया, यह बाँध एक इस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था इसलिए इंजीनियरों ने मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था।
एम. विश्वेश्वरैया दीवान :-
मैसूर राज्य उनके द्वारा दिये गये योगदान को देखते हुए मैसूर के राजा ने उन्हें 1912 में राज्य का दीवान नियुक्त किया। मैसूर के दीवान के रूप में उन्होंने राज्य के लिए कई बड़े काम किये। राज्य के लिए शैक्षिक और औद्योगिक विकास के लिए कई प्रयास किये। उनके प्रयासों से राज्य में कई नये उद्योग लगे। जिनमे से प्रमुख थे चन्दन तेल फैक्टरी, साबुन फैक्टरी, धातु फैक्टरी, क्रोम टेनिंग फैक्टरी आदि। दीवान के रूप मे उनके द्वारा शुरू किये गए कारखानों में से सबसे महत्वपूर्ण भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स कारखाना था। मैसूर के लिए कई बड़े काम करने के बाद एम विश्वेश्वरैया ने 1918 में दीवान पद से सेवानिवृत्त हो गए।
सेवानिवृत्ति होने के बाद भी वो सक्रिय रूप से काम करते रहे। स्वतन्त्रता के बाद के लिए उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए सन 1955 में भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। जब सर एम विश्वेश्वरैया 100 साल हुए तब भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। ((M Visvesvaraya biography in hindi))
ऍम विश्वेश्वरैया को प्राप्त सम्मान और पुरस्कार :
1- लन्दन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सिविल इंजीनियर्स द्वारा 1904 मे मानद की उपाधी दी गई।
2- उनकी सेवाओं के लिए 1906 ''केसर-ए-हिंद'' की उपाधि दी गई।
3- 1911 मे कम्पैनियन ऑफ़ द इंडियन एम्पायर (CIE) का पुरस्कार दिया गया।
4- 1915 मे नाइट कमांडर ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ इंडियन एम्पायर (KCIE) अवार्ड से सम्मानित किया गया।
5- कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा 1921 मे डॉक्टर ऑफ़ साइंस अवार्ड से सम्मानित किया गया।
6- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा 1937 मे D. Litt अवार्ड से सम्मानित किया गया।
7- 1943 मे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स द्वारा मानद की उपाधी दी।
8- इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा 1944 मे D.Sc. अवार्ड दिया गया।
9- मैसूर विश्वविद्यालय ने 1948 मे डॉक्टरेट की उपाधी से नवाज़ा था।
10- आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा 1953 मे D.Litt अवार्ड से सम्मानित किया।
11- इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टाउन प्लानर्स ने 1953 मे मानद फैलोशिप से सम्मानित किया।
12- 1955 मे भारत के सर्वश्रेठ पुरस्कार भारत रत्न सम्मानित किया गया।
13- 1913 मे मैसोर राज्य के दीवान नियुक्त किया गया।
14- 1927 मे टाटा स्टील के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर मे जगह दी गई।
मृत्यु :-
14 अप्रैल 1962 को विश्वेश्वरैया का निधन 101 साल उम्र हो गई।
((यहाँ पर हमनें एम. विश्वेश्वरैया के जीवन के बारे में और उनके संघर्ष के बारे मे बताया है, यदि आपको उनके बारे मे और कोई जानकारी चाहिए या आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न आ रहा है, तो कमेंट बाक्स के माध्यम से पूँछ सकते है, हम आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार कर रहे है))