gulzarilal nanda biography in hindi
उपलब्धियां :
भारत के ऐसे प्रधानमंत्रि जो दो बार अतिरिक्त कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने इस ज़िम्मेदारी को दो बार निभाया। यह प्रासंगिक ही था कि कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में गुलज़ारी लाल नंदा के व्यक्तित्व और कर्तव्य को भी यहाँ पर प्रस्तुत किया जाता। दरअसल भारत की संवैधानिक परम्परा में यह प्रावधान है कि यदि किसी प्रधानमंत्री की उसके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाए और नया प्रधानमंत्री चुना जाना तत्काल सम्भव न हो तो कार्यवाहक अथवा अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति तब तक के लिए की जा सकती है, जब तक की नया प्रधानमंत्री विधिक रूप से नियुक्त नहीं कर दिया जाता।
संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्रधानमंत्री के पद को रिक्त नहीं रखा जा सकता। कांग्रेस पार्टी के प्रति समर्पित गुलज़ारी लाल नंदा प्रथम बार पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 में कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इनका कार्यकाल दोनों बार उसी समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया।
जन्म एवं परिवार :
नंदाजी के नाम से विख्यात गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई 1898 को आज के पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था। इनके पिता का नाम बुलाकी राम नंदा और माँ का नाम श्रीमती ईश्वर देवी नंदा था। नंदा जी ने प्राथमिक शिक्षा सियालकोट के स्कूल से ही प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए लाहौर के फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राप्त की। नंदाजी ने कला संकाय से स्नातकोत्तर एवं क़ानून मे स्नातक की डिग्री हासिल की। इनका विवाह 18 साल की उम्र मे 1916 'लक्ष्मी देवी' के साथ हुआ। इनके दो पुत्र और एक पुत्री हुई।
गुलजारी लाल नंदा का स्वतंत्रता के पूर्व जीवन :-
गुलज़ारी लाल नंदा राष्ट्रभक्त थे, उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में काफ़ी योगदान दिया। नंदाजी ने अपना जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित कर दिया था। 1921 में उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था। नंदा जी गाँधी जी के अनुयायी थे, वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मुम्बई मे स्थित 'नेशनल कॉलेज' में अर्थशास्त्र के अध्यापक के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। वह 1922 से 1946 तक अहमदाबाद की 'टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री' में 'लेबर एसोसिएशन' के सचिव भी रहे थे। वह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनकी समस्याओं का निदान करने का प्रयास करते रहते थे। नंदाजी को 1932 में सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान और 1944 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान समय जेल जाना पड़ा था।
गुलजारी लाल नंदा का राजनीतिक जीवन :-
नंदाजी ने पहली बार मुम्बई के विधानसभा चुनाव मे 1937 विधायक चुने गये और 1947 मे दूसरी बार विधायक चुने गये। इस दौरान उन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार सभाला।
1947 में 'इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन' की स्थापना हुई थी जिसका श्रेय नंदाजी को जाता है। नंदा जी के राजनीतीक सूझ बुझ और प्रतिभा को देख कर कांग्रेस पार्टी ने उन्हें दिल्ली बुला लिया। भारत के स्वतंत्रता के बाद वह राजनीती मे और भी सक्रिय होगये और कांग्रेस आलाकमान उनके अनुभव का इस्तमाल केंद्रीय राजनीती मे करना चाहती थी, इसलिए उन्हें दिल्ली मे ही रुकने को कहा गया, वह दिल्ली मे ही रुक गये।
फिर उन्हें 1950, 1952 और 1960 में भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष बनाया गया। ऐसे में भारत के स्वतंत्रता के बाद नंदाजी का काफ़ी सहयोग पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त हुआ। उसके बाद भी उन्होंने कई पद सभाले। नंदाजी ने 1951 मे योजना मंत्रालय का कार्यभार सम्भाला। फिर उन्होंने सिंचाई एवं ऊर्जा के मंत्रालय को सम्भाला। और फिर 1963 मे उन्होंने श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय सम्भाला।
नंदा जी कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप मे :-
नंदाजी कांग्रेस पार्टी के मंत्रिमण्डल में वरिष्ठतम नेता थे इस कारण दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री का दायित्व सम्भाला। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद इनका प्रधानमंत्री के रूप मे प्रथम कार्यकाल 27 मई 1964 से 9 जून 1964 तक रहा। और शास्त्री जी की मृत्यु के बाद दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक रहा। नंदाजी भारत के प्रथम पाँच आम चुनावों में जीतकर संसद मे पहुचे। इन्होने जो भी पद संभाले उसे जनता ने काफी सराहा। नंदा जी गांधीवादी विचारधारा मे चलने वाले व्यक्ति थे, लोकतांत्रिक मूल्यों में इनकी गहरी आस्था थी। नंदाजी धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवादी समाज की कल्पना करते थे।
वह बहुत ही सालीन व्यक्ति थे, वह आजीवन ग़रीबों की मदद करते रहे। नंदाजी वृद्धावस्था मे भी लोगों की सेवा करना नहीं छोड़ा, वह जब तक जीवित रहे गरीबों की मदद करते रहे। लोगों की मदद करने के लिए उन्होंने एक संगठन भी बनाया था। नंदाजी ने आजीवन नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीति की थी। अपनी उम्र के अन्तिम पड़ाव पर पहुँचने के बाद उन्होंने भारत की बदलती राजनीति को देश के लिए घातक बताया। क्योंकी उस वक्त राजनीति में काफी अपराधी तत्वों का सक्रिय होगये थे जो उन्हें चिंतित करता था। इस सम्बन्ध में वह हमेशा कहते थे, अपराधी तत्व राजनीति की कैंसर के समान घातक साबित होगी।
नंदा जी लेखक के रूप मे :-
नंदाजी कुशल राजनेता के साथ एक शानदार लेखक भी थे, उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की। जिनके नाम इस प्रकार हैं-
1- सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी
2- अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान
3- गुरु तेगबहादुर
4- संत एंड सेवियर
5- हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स
6- फॉर ए मौरल रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन।
पुरस्कार :
गुलज़ारीलाल नन्दा जी को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुये उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न (1997) मे दिया गया, और भारत का दूसरा सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार 'पद्म विभूषण' प्रदान किया गया।
गुलजारी लाल नंदा का निधन :-
15 जनवरी 1998 मे नंदा जी का देहांत 100 वर्ष की अवस्था में हुआ था। इन्हें एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता और समाज सेवक के रूप में सदैव याद रखा जाएगा।
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