करतार सिंह सराभा की जीवनी
फाँसी के फंदे पर झूलने से पहले
करतार सिंह सराभा ने कहा था- हे भगवान मेरी यह प्रार्थना है कि मैं भारत में उस समय तक जन्म लेता रहूँ, जब तक कि मेरा देश स्वतंत्र न हो जाये।
करतार सिंह सराभा का प्रारम्भिक जीवन :-
सरदार करतार सिंह सराभा का जन्म पंजाब प्रान्त के लुधियाना मे 24 मई 1896 मे हुआ था। करतार सिंह सराभा भारत के उन प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक थे जिन्होंने अपने प्राण देश के लिये हसते हसते न्योछावर कर दिये थे।
उन्हें उनके शौर्य, साहस, त्याग एवं बलिदान के लिए हमेशा याद रखा जायेगा। जब करतार सिंह सराभा मात्र 19 वर्ष के थे तब ही उन्होंने भारत के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिये थे।
करतार सिंह सराभा के शौर्य एवं बलिदान की मार्मिक गाथा आज भी भारतीयों के लिये प्रेरणा का स्रोत है और भविष्य मे भी देती रहेगी। आज के युवा यदि सराभा के बताये हुए मार्ग पर चलें, तो न केवल अपना, अपितु देश का मस्तक भी ऊँचा कर सकते हैं।
करतार सिंह सराभा का क्रन्तिकारी जीवन :-
1905 मे ब्रिटिश सरकार द्वारा किये गये बंगाल विभाजन के कारण पुरे भारत मे क्रांतिकारी आन्दोलन की शुरुआत हो चुकी थी, इसी आंदोलन से प्रभावित हो कर करतार सिंह सराभा भी क्रांतिकारि गतविधियों में सम्मिलित हो गये। करतार सिंह छोटी सी उम्र मे ही देश को किसी भी तरह आजादी दिलाना चाहते थे।
लाला हरदयाल का साथ:-
करतार सिंह सराभा को महान क्रन्तिकारी लाला हरदयाल का साथ मिला, 1911 में करतार सिंह सराभा अपने कुछ साथियों के साथ अमेरिका चले गये। वहाँ वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने गये थे, लेकिन वह उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। इसके बाद वह हवाई जहाज बनाना सिखने के लिये एक हवाई जहाज निर्माण कारखाने भारती हो गये।
यह वही समय था जब करतार सिंह सराभा लाला हरदयाल के संपर्क मे आये थे, लाला हरदयाल तब अमेरिका में रह कर भारत की स्वतंत्रता के प्रयत्न कर रहे थे। लाला हरदयाल इसके लिये सेन फ़्राँसिस्को में कई स्थानों का दौरा किया और भाषण दिया करते थे, इसी दौरान सराभा की मुलाक़ात लाला हरदयाल से हुई और फिर करतार सिंह सराभा लाला हरदयाल के साथ उनके क्रन्तिकारी गतिविधि मे शामिल होगये और पुरे अमेरिका का भृमण किया।
अमेरिका मे भृमण के दौरान 25 मार्च 1913 में ओरेगन प्रान्त में भारतीयों की एक बहुत बड़ी सभा हुई, जिसके मुख्य वक्ता लाला हरदयाल थे। लाला हरदयाल ने सभा में भाषण देते हुए कहा मुझे ऐसे युवाओं की जरुरत है, जो भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर सकें। इस कथन को सुन कर सर्वप्रथम करतार सिंह सराभा ने अपने आपको देश के लिये प्रस्तुत किया। लोगों ने इस युवा की देश को आजाद कराने की उत्सुकता को देख लोगों ने खूब तालिया बजाई इन्ही तालियों की गड़गड़ाहट के बीच लाला हरदयाल ने सराभा को गले से लगा लिया।
सम्पादन कार्य:-
इसी सभा में लाला हरदयाल ने गदर नाम के समाचार-पत्र के प्रकाशन करने का निश्चय किया गया, इस समाचार पत्र मे भारत की स्वतंत्रता का प्रचार किया जाता था। इस समाचार पत्र को भारत की कई भाषाओं में प्रकाशित किया जाता था। 1913 में इस समाचार पत्र का पहली बार प्रकाशन किया गया। इस समाचार पत्र के पंजाबी संस्करण के सम्पादन का कार्य करतार सिंह सराभा सभाल रहे थे।
योजना की असफलता:-
1914 में जब पहले विश्व युद्ध की शुरुआत हुई तब इस युद्ध मे ब्रटिश सेना बुरी तरह फँस गई थी, जर्मनी की सेना ब्रिटिश सेना को चारों तरफ से घेर रही थी, ऐसी स्थिति में ग़दर पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एक योजना बनाई कि किसी भी तरह भारत मे ब्रिटिश सरकार के बिरुद्ध बड़ा क्रन्तिकारी विद्रोह हो जाये तो ब्रिटिश सरकार इस विद्रोह को सम्हाल नहीं पायेगी और भारत को आजाद करना पड़ेगा।
इस योजना की तयारी करने के लिये अमेरिका में रहने वाले चार हज़ार भारतीय एक साथ आये। उन सभी ने अपना सब कुछ बेचकर गोला-बारूद और पिस्तोलें ख़रीदीं। फिर एक जहाज लेकर भारत की ओर रवाना हो गये। इन क्रन्तिकारीयों मे एक सराभा भी थे।
लेकिन इस योजना के बारे मे किसी तरह ब्रिटिश सरकार को पता चल गया, अतः कार्य पूर्ण होने से पूर्व भारत के समुद्री तट के किनारे पर पहुँचने पर इन क्रांतिकारियों को बन्दी बना लिया गया। लेकिन सराभा अपने कुछ साथियों के साथ किसी प्रकार से वहाँ से बच निकलने में सफल रहे।
वहाँ से निकलकर वह पंजाब आगये और वहाँ पहुँचकर उन्होंने गुप्त रूप से विद्रोह के लिए तैयारियाँ आरम्भ कर दीं।