acharya prafulla chandra roy biography in hindi
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acharya prafulla chandra roy |
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय को आधुनिक भारत के रसायन विज्ञान के जनक के रूप मे जाना जाता है। वह बहुत ही शांत और गंभीर प्रवती वाले व्यक्ति थे और सबसे महत्वपूर्ण वह एक देशभक्त वैज्ञानिक थे जिन्होंने रसायन विज्ञान के छेत्र मे भारत को स्थापित करने के लिए अप्रतिम प्रयास किए। आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के 'सादा जीवन उच्च विचार' वाले उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को देख कर महात्मा गांधी ने कहा था, प्रफुल्ल चंद्र राय को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वह एक महान वैज्ञानिक भी हो सकता है।
नाम - प्रफुल्ल चंद्र राय
जन्म - 2 अगस्त, 1861
जन्म स्थान - जैसोर
पिता - हरिश्चंद्र राय
माता - भुवनमोहिनी देवी
भाई - नलिनीकांत राय
स्कूल - अल्बर्ट स्कूल
कॉलेज - मेट्रोपोलिटन कॉलेज
कार्य - शिक्षक, रसायन वैज्ञानिक, उद्योगपति
स्वर्गवास - 16 जून, 1944
प्रफुल्लचंद्र राय का प्रारम्भिक जीवन :-
प्रफुल्लचंद्र राय का जन्म जैसोर ज़िले के ररौली गांव में 2 अगस्त 1861 में हुआ था। यह स्थान अब बांग्लादेश में है और इसे अब खुल्ना ज़िले के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम हरिश्चंद्र राय था जो ररौली गांव के बड़े जमींदार थे। आचार्य राय की माँ का नाम भुवनमोहिनी देवी था, वह भी एक बड़े घराने की महिला थी वह भी काफी पढ़ी लिखी उत्कृष्ट विचारों वाली महिला थी।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की प्रारम्भिक शिक्षा :-
आचार्य राय के पिता एक पुस्तकालय चलाते थे। उनका झुकाव पश्चात शिक्षा की ओर था। इसलिए उन्होंने अपने गांव में एक मॉडल स्कूल की स्थापना की थी जिसमें आचार्य प्रफुल्ल ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने अल्बर्ट स्कूल में दाखिला लिया। फिर मेट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के लिये उन्होंने 1871 डेविड हेयर स्कूल में प्रवेश लिया।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय ने अपनी आत्मकथा में बताया है कि किस तरह अंग्रेजी स्कूल में उनके साथ पढ़ने वाले अंग्रेज बच्चे उनका मज़ाक उड़ाया करते थे। आचार्य राय इस स्कूल में ज़्यादा दिन नहीं पढ़ सके उन्हें बीमारी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। उसके बाद कई साल तक बीमार रहे वो फिर जब वह ठीक हुये तो उन्होंने फिर स्कूल जाना शुरू कर दिया और साल 1879 में उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की। फिर उन्होंने उच्च शिक्षा के लिये मेट्रोपोलिटन कॉलेज (अब विद्यासागर कॉलेज) में दाखिला लिया। यह एक शासकीय कॉलेज था इसलिए यहाँ की फीस भी काफी कम थी।
उन्होंने दाखिला सिर्फ आर्थिक कारणों से नहीं लिया था बल्कि उस समय के प्रसिद्ध अंग्रेज़ी के भारतीय प्रोफेसर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और प्रशांत कुमार लाहिड़ी वहां अंग्रेज़ी पढ़ाते थे। प्रफुल्ल चंद्र राय ने उनसे अंग्रेजी सीखी और फिर उस समय मेट्रोपोलिटन कॉलेज मे रसायन विज्ञान ग्यारहवीं कक्षा का एक अनिवार्य विषय था। इसलिए प्रफुल्ल चंद्र राय ने रसायन विज्ञान को अपना मुख्य विषय बनाने का निर्णय कर लिया था।
प्रफुल्ल चंद्र आंगे पढ़ने के लिये गिलक्राइस्ट इम्तहान की तैयारी करने लगे, इस इम्तहान मे पास होने के बाद उन्हें छात्रवृत्ति मिल जाती और आगे के अध्ययन के लिए वह इंग्लैंड जा सकते थे। उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से इस परीक्षा को क्लियर कर लिया। सफल होने के बाद आखिर उन्हें इंग्लैंड जाने का अवसर मिला। जब वह इंग्लैंड जा रहे थे तो उन्हें उनके पहचान वाले बता रहे थे वहाँ के रीति-रिवाज़ अलग है कैसे रह पाओगे तो उन्होंने कहा चिंतित होने की जरुरत नहीं है मै आराम से अपने रीति रिवाज़ के साथ ही वहाँ रहूँगा। उन्हें अंग्रेज़ों की तरह रहना पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने भारतीय परिधान बनवाये और इसी वेश में इंग्लैंड गए। उस समय लंदन में जगदीश चंद्र बसु भी पढ़ रहे थे। वही दोनों आपस मे काफी अच्छे मित्र हो गये।
प्रफुल्ल चंद्र राय इंग्लैंड जाकर एडिनबरा विश्वविद्यालय में दाखिला लिया क्योंकी यह कॉलेज रसायन विज्ञान की पढ़ाई के लिए मशहूर था। साल मे उन्होंने अपना 1885 पी.एच.डी का शोधकार्य पूरा किया। आचार्य राय के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें एक एडिनबरा विश्वविद्यालय मे एक साल के लिये रसायन सोसायटी के लिये अपना उपाध्यक्ष चुना।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय भारत वापस लौटे :-
1888 मे आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय छह साल इंग्लैंड मे रहने के बाद भारत वापस आए। भारत लौटने के बाद भी उन्होंने रसायन विज्ञान में अपना शोधकार्य जारी रखा था। भारत मे लौटने के बाद वह एक साल तक जगदीश चंद्र बसु के घर मे रहे। यहाँ रह कर उन्होंने रसायन विज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान की पुस्तकों का अध्ययन किया और रॉक्सबोर्ग की 'फ्लोरा इंडिका' और हॉकर की 'जेनेरा प्लाण्टेरम' की सहायता से कई पेड़-पौधों की प्रजातियों को पहचाना एवं संग्रहीत किया।
प्रफुल्ल चंद्र राय का व्यावसायिक जीवन :-
जुलाई 1889 मे प्रफुल्ल चंद्र राय को प्रेसिडेंसी कॉलेज में रसायन विज्ञान के सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया। यहीं से उनके जीवन की नई शुरुआत हुई। साल 1911 में वह सहायक प्रोफेसर से प्रोफेसर बन गये। साल 1916 में वे प्रेसिडेंसी कॉलेज से रसायन विज्ञान के विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत हुए।
फिर 1916 से 1936 तक उसी जगह एमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत रहे। सन् 1933 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पण्डित मदन मोहन मालवीय ने आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय को डी.एस-सी की मानद उपाधि से विभूषित किया। वे देश विदेश के अनेक विज्ञान संगठनों के सदस्य रहे।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय द्वारा रखी गई स्वदेशी उद्योग की नींव :-
उस समय अंग्रेज सरकार भारत का कच्चा माल सस्ती दरों मे भारत से खरीद कर इंग्लैंड ले जाती थी फिर वहाँ से तैयार वस्तुएं हमारे देश में आती थीं और जो बहुत ऊँचे दामों पर भारत मे ही बेची जाती थीं। अंग्रेजो की इस चालाकी से निपटने के लिये आचार्य राय ने स्वदेशी उद्योग की नींव डाली। उन्होंने 1892 में अपने घर से ही औषधियों के एक छोटे से कारखाने से शुरुआत की। उनका मानना था कि इस तरह के प्रयास से ही भारत धीरे धीरे आत्मनिर्भर होगा, अपने उद्योग को सफल बनाने के लिये उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी। आचार्य हर दिन जब कॉलेज से लौटते उसके बाद फिर अपने कारखाने के काम में लग जाते थे।
आचार्य राय कहते थे इस तरह काम करने से वे थक जाते थे लेकिन अपने और अपने देश के लिये काम करने मे आनंद आता था। उन्होंने बहुत छोटे से उद्योग की नीव रखी थी जो आज एक एक बड़े उद्योग मे बदल चूका है। जिसे आज बंगाल केमिकल्स ऐण्ड फार्मास्यूटिकल वर्क्स के नाम से जाना जाता है। पहले उद्योग के सफल होने के बाद उन्होंने और भी कई उद्योग की शुरुआत की, जिनमे से कुछ यह है -सौदेपुर में स्थापित गंधक से तेजाब बनाने का कारखाना, कलकत्ता पॉटरी वर्क्स, बंगाल एनामेल वर्क्स, तथा स्टीम नेविगेशन हैं।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान :-
आचार्य राय एक सच्चे देशभक्त थे उनका कहना था;- विज्ञान प्रतीक्षा कर सकता है, पर स्वराज नहीं कर सकता। आचार्य राय ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर भाग लिया, अंग्रेजो को भारत से भागने के लिये वह दिन रात प्रयास करते रहते थे, इसके लिये वह गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिलते रहते थे। कलकत्ता में जब गांधी जी कोई सभा करते थे तो सफल करने का श्रेय डा. राय को ही जाता है। वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक सक्रिय भागीदार थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई के कई बार भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को आर्थिक सहायता दी थी।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के शोध कार्य :-
उस समय आचार्य राय के शोध सम्बन्धी प्रकाशन में लगभग 200 परचे प्रकाशित हुए थे। इसके अलावा उन्होंने कई दुर्लभ भारतीय खनिजों की खोज की थी। वह कहते थे उनका उद्देश्य है मेंडलीफ की आवर्त-सारिणी में छूटे हुए तत्वों को धुड़ना। वह रसायन विज्ञान मे खुद तक सिमित नहीं थे, उन्होंने अनेक भारतीय युवाओं को रसायन विज्ञान की तरफ प्रेरित किया और उन्हें रसायन विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के लिये आर्थिक सहायता भी प्रदान करते थे। आचार्य राय ने दो भागों में 'हिस्ट्री आफ़ हिन्दू केमिस्ट्री' नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखा। इससे दुनिया को पहली बार यह जानकारी मिली कि प्राचीन भारत में रसायन विज्ञान कितना सम्पन था। 'हिस्ट्री आफ़ हिन्दू केमिस्ट्री' का प्रथम भाग साल 1902 में प्रकाशित हुआ तथा दूसरा भाग 1908 में। उनकी इन कृतियों को रसायन विज्ञान मे उनके अहम योगदान के रूप में माना जाता है। इसके अलावा भी उन्होंने रसायन विज्ञान मे अपने कई योगदान दिये थे। आचार्य राय ने रसायन विज्ञान को भारत मे आगे बढ़ाने के लिये अपनी आय का 90 प्रतिशत दान कर दिया था।
इसके लिये साल 1922 में उन्होंने महान नागार्जुन के नाम पर वार्षिक पुरस्कार शुरू किया, जिसके लिये 10000 रुपए दिये। साल 1936 में उन्होंने आशुतोष मुखर्जी के नाम पर भी एक शोध-पुरस्कार शुरू करने के लिए दस हज़ार दिये। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय को रसायन विभाग के विस्तार के लिए 1,80,000 रूपए दिये।
आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय का निधन :-
16 जून 1944 वह दिन था जब आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय इस महान वैज्ञानिक और देशभक्त का निधन कलकत्ता में हो गया।
आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय ने बहुत सादगी मे अपना पूरा जीवन बिताया, उन्होंने आजीवन शादी नहीं की अपने को सभी रिश्ते और बंधनों से दूर रखा और सदा देश की सेवा मे लगे रहे। सचमुच, उन्हें भारतीय विज्ञान जगत का पितामह कहा जा सकता है।